लेखनी प्रतियोगिता -14-Apr-2023 हंगामा क्यों है बरपा
जबसे यह समाचार सुनने में आया है कि एक माफिया डॉन जिस पर सौ से अधिक एफ आई आर दर्ज हैं का हत्यारा बेटा और उसका एक गनर एनकाउंटर में ढेर हो गये हैं तब से लिबरल्स और सेकुलर्स जार जार रो रहे हैं । ऐसा लग रहा है कि जैसे ये दोनों मृतक इन लिबरल्स और सेकुलर्स के दामाद हों । अपने दामादों की मृत्यु पर भी ये दोगले लोग इतने नहीं रोये होंगे जितने इन "दामादों" के एनकाउंटर पर रो रहे हैं । इनकी मौत पर इन लिबरल्स ने इतना जहर उगला है कि पूरा देश जहर के दलदल में फंस गया है ।
ये वही लोग हैं जो कहते थे "आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता" लेकिन जिनका एनकाउंटर हुआ है उनका मजहब देखकर ये लोग बिलख रहे हैं । इनके आंसू तब नहीं निकले जब इसी हत्यारे ने गवाह उमेश पाल की हत्या सरेआम की थी और दो पुलिस कार्मिकों को भी गोलियों से भून दिया था । तब ये लिबरल्स और सेकुलर्स दुम दबाये हुए चुपचाप देख रहे थे । तब उन निर्दोष लोगों की हत्या पर इन्हें कोई दुख नहीं हुआ । मगर जब हत्यारों का एनकाउंटर हो गया तो ये बुरी तरह से बिलख पड़े । अब ये कह रहे हैं कि वह तो बेचारा "बीस साल" का ही था । अतीक अहमद ने न जाने कितनों को मारा है, न जाने कितनों के साथ बलात्कार किया है , इन लिबरल्स को उसके कुकर्म दिखाई नहीं देते और इस एनकाउंटर को "फर्जी" एनकाउंटर बता रहे हैं ।
एक लिबरल रास्ते में मिल गया था । उसने विधवा स्त्री का सा लिबास पहन रखा था । मांग उजड़ी हुई थी उसकी । मैंने कहा "ये क्या हाल बना रखा है ? कुछ लेते क्यों नहीं" ?
वह लिबरल मेरे कंधे पर सिर रखकर बहुत देर तक रोता रहा और कहने लगा "क्या लें और क्या ना लें ? बेचारे को गोलियों से भून दिया । इतनी गोलियां भर दीं उसके जिस्म में कि ऐसा लगता है कि उसमें गोलियों के सिवा कुछ और है ही नहीं । ये तानाशाही है, हत्या है और कानून का मजाक है । हम चुप नहीं बैठेंगे" । वह चिंघाड़ उठा ।
"चुप रहना भी नहीं चाहिए । तुम तो विकास दुबे की जब गाड़ी पलटी थी तब भी जार जार रोये थे । आतंकवादियों और माफियाओं के लिए ही तुम लिबरलों के आँसू क्यों निकलते हैं ? किसी उमेशपाल के लिए क्यों नहीं निकलते ? और, तुम तो विकास दुबे को न्याय दिलवाने सुप्रीम कोर्ट भी गये थे ना , क्या हुआ वो भी तो बता दीजिए" ?
"हमको ले देकर आस सुप्रीम कोर्ट से ही तो है क्योंकि वहां भी हमसे बड़े वाले लिबरल्स बैठे हैं । पर पता नहीं आजकल इनकी हवाइयां क्यों उड़ रही हैं ? हमारे मन माफिक फैसले नहीं हो रहे है । ये सरकार की तानाशाही का जीता जागता सबूत है" ।
"पर एक बात बताओ लिबरल जी, इस अतीक ने न जाने कितनों को मारा है , तब तो तुम्हें कोई दुख नहीं हुआ ? इस अतीक का इतना अधिक दबदबा था कि इसका कुत्ता लाल टोपी वाली पार्टी के मुखिया और उस समय के मुख्य मंत्री से भरी सभा में मंच पर हाथ मिलाता था । तब तो तुम लोग बड़े खुश होते थे । तब अगर हाय तौबा मचाई होती तो आज यूं "रंडापा" नहीं भोगना पड़ता आपको" ।
"देखो जी, हम लिबरल्स और सेकुलर्स तो जन्म जात दोगले हैं । एक मजहब के लिए हमारे मन में अगाध श्रद्धा है और दूसरे के लिए अपार घृणा । हम आज तक यही करते आ रहे हैं । इन मजहबी लोगों की आतंकवादी गतिविधियों का भी हम लोग पूरा समर्थन करते आये हैं और "भगवा आतंकवाद" की फर्जी कहानी गढते आये हैं । मगर इस सोशल मीडिया ने सब सत्यानाश कर दिया । न्यूज चैनल्स और अखबारों को तो हम लोग मैनेज कर लेते थे मगर सोशल मीडिया को मैनेज नहीं कर पा रहे हैं । ऊपर से मोदी और योगी दोनों ने ऐसी तैसी कर रखी है हमारी । अब तो अमरीका भी हमारी कोई मदद नहीं करता है । कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें " ?
उनका दुख बहुत बड़ा था और शायद खत्म होने की कोई संभावना भी नहीं लग रही थी अभी । वैसे एक बात कहें , इन लिबरल्स को रोते बिलखते देखकर बहुत मजा आता है । काश, ये ताजिंदगी ऐसे ही रोते रहें ।
श्री हरि
14.4.23
Punam verma
15-Apr-2023 09:21 AM
Very nice
Reply
Abhinav ji
15-Apr-2023 08:43 AM
Nice
Reply
अदिति झा
15-Apr-2023 12:49 AM
यथार्थ
Reply